चाँद
सब को होती है अत्यंत ख़ुशी,
जब दिखता है अंधियारे में शशि l
टिमटिमाते तारों के आँगन में,
चाँद सबके मन को भाया l
चाँद की शीतल चांदनी ने,
दबी आकांक्षाओ को जगाया l
चाँद मैं पूछती हूँ तुमसे एक सवाल,
क्यों प्रतिदिन बदलते हो तुम अपना हाल?
परन्तु बदलते बदलते तब तक नहीं लेते तुम दम,
जब तक खुद से परिपूर्ण नहीं हो जाते तुम।
चकोर की प्यासी आँखें,
सदा तुम्हें निहारती।
पूर्णिमा की रात,
तुम्हें बार बार पुकारती।
जब भी रश्के-कमर से मिलती है झलक मेरी,
तो लगता है मैं हूँ खुशनसीब।
अगर होते पँख मेरे,
तो चली आती मैं तेरे करीब।
मदीहा XI A